रेख्ता फाउंडेशन द्वारा तीन दिवसीय उर्दू साहित्य का उत्सव "जश्न-ए-रेख़्ता" की शुरूआत नई दिल्ली स्थित मेजर ध्यानचंद स्टेडियम में हो गई है। यह उत्सव आज से शुरू होकर 9 और 10 दिसंबर तक चलेगा।
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सज गया उर्दू साहित्य का सबसे बड़ा मंच "जश्न-ए-रेख़्ता"
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रेख्ता फाउंडेशन द्वारा तीन दिवसीय उर्दू साहित्य का उत्सव "जश्न-ए-रेख़्ता" की शुरूआत नई दिल्ली स्थित मेजर ध्यानचंद स्टेडियम में हो गई है। यह उत्सव आज से शुरू होकर 9 और 10 दिसंबर तक चलेगा।
पंजाब राज्य के अमृतसर शहर के मध्य में, स्वर्ण मंदिर के पास स्थित यह उद्यान आज भी मौजूद है। जो 1919 के जलियांवाला बाग नरसंहार की याद दिलाता है। जलियांवाला बाग 6.5 एकड़ का सार्वजनिक उद्यान है जो राष्ट्रीय महत्व रखता है। यह उन सभी लोगों के लिए समर्पित एक उद्यान है जिन्होंने कुख्यात जनरल डायर की खुली गोलीबारी के दौरान अपनी जान गंवा दी थी।
त्योहारों में अपने घरों को लौटते मजदूर रेलगाड़ियों के शौचालयों में बैठकर यात्रा करने के लिए मजबूर हैं। देश की बढ़ती जनसंख्या के साथ भले ही सरकार त्योहारों पर स्पेशल ट्रेनें चलवा रही हो लेकिन भारी संख्या में घर लौटते मजदूरों के लिए ट्रेनों में मुश्किल से मिले सामान्य श्रेणी के दो डिब्बे पर्याप्त नहीं है। यह स्थिति सिर्फ त्योहारों की नहीं है बल्कि पूरे बारहमास की है।
पूरा देश उस समय अचरज से भर गया जब नए संसद भवन में लोकसभा सदन की दर्शक दीर्घा से गुरूवार को दो युवक सदन की कार्यवाही के दौरान नीचे कूद पड़े और स्मोग बम से धुआं फैलाया। जहां एक ओर यह घटना सुरक्षा व्यवस्था पर प्रश्न खड़े करती है तो वहीं दूसरी ओर देश के बेरोजगार युवाओं की समस्याओं की ओर सरकार का ध्यान भी आकृष्ट करती है।
देश की राजधानी में दिनों-दिन बढ़ता प्रदूषण खतरे की घंटी बजा रहा है। ये बात किसी से छिपी हुई नहीं है कि दिल्ली में प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिए किए गए इंतज़ाम किसी काम के नहीं है। जैसे जैसे सर्दियां बढ़ती जाती हैं वैसे वैसे दिल्ली वालों की सांसों पर संकट के बादल मंडराने लगते हैं और ये स्थिति सिर्फ़ देश की राजधानी की ही नहीं बल्कि संपूर्ण उत्तर भारत की साथ साथ मध्य भारत की भी है।
भारत में जैसे ही चुनावी मौसम करवटें बदलता हुए दिखाई देता है वैसे ही राजनीतिक पार्टियां लोकलुभावन वादे करना प्रारंभ कर देती हैं। पार्टियों की इन अतरंगी घोषणाओं से विकास की संभावनाएं भले ही दिखाई ना दें लेकिन जनता की आँखे ज़रूर चमक उठती हैं। ऐसा ही कुछ इस चुनावी बयार में भी देखने को मिल रहा है। सभी राजनीतिक पार्टियां मुफ़्त की पेशकश देने में एक दूसरे को मात देती हुई नज़र आ रही हैं।
इस देश में लड्डू और गुठली जैसे लाखों बच्चें है, जो इस देश की गंदगी साफ़ करने में ही अपना बचपन खफा देते हैं। सरकार की हजारों योजनाओं के बाद भी उन तक उसका लाभ नहीं पहुंचता है। ये फ़िल्म न सिर्फ़ जाति व्यवस्था की सच्चाई उजागर करती है बल्कि उस पर प्रहार भी करती है।
यमुना में बढ़ता प्रदूषण राजधानी के लिए चिंता का विषय बना हुआ है। गुरुग्राम से प्रतिदिन एक लाख क्यूसेक प्रदूषित पानी नजफगढ़ ड्रेन से यमुना में डाला जा रहा है। इससे नदी की गंदगी और बढ़ती जा रही है । इसके साथ ही पानी की सफाई न होने से आसपास के लोगों को दुर्गंध जैसी परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है।
हाल ही में "एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स" (एडीआर) ने जो आँकड़े ज़ारी किए हैं वो बेहद चौकाने वाले हैं। देश के 107 सांसदों और विधायकों के खिलाफ़ नफ़रत फैलाने वाले भाषण देने के आरोप में मामले दर्ज़ हैं। इतना ही नहीं, पिछले पांच वर्षों में 480 ऐसे उम्मीदवारों ने चुनाव भी लड़ा है, जिनके खिलाफ़ नफ़रती भाषण देने के आरोप हैं। एडीआर ने चुनाव में असफल उम्मीदवारों के चुनावी हलफनामों का विश्लेषण कर ये आँकड़े ज़ारी किए।
बिहार सरकार का मानना है कि जातीय जनगणना के माध्यम से हाशिए पर खड़ी जातियों का ना सिर्फ़ उत्थान संभव है बल्कि उन्हें एक बेहतर जीवन भी मुहैया कराया जा सकेगा। ये आंकड़े भविष्य में राज्य की नीतियां बनाने में सहयोगी अवयव होंगे। लेकिन प्रश्न ये भी उठता है कि क्या मात्र जातीय जनगणना के आंकड़ों से ही सब तक एक समान न्याय और विकास पहुंचेगा या इसकी जमीनी हकीकत कुछ और है?
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