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105 साल बाद भी जलियांवाला बाग़ की दीवारों पर ज़िंदा हैं अंग्रेज़ी क्रूरता के निशान..

जलियांवाला बाग़ हत्याकांड ,भारतीय इतिहास का एक ऐसा काला दिन जिस दिन हजारों निर्दोष भारतीयों को गोलियों से भून डाला गया था। 13 अप्रैल 1919 का वह दिन जब अमृतसर के एक पार्क में शांतिपूर्ण ढंग से विरोध प्रदर्शन कर रही निहत्थी भीड़ पर जनरल डायर के सैनिकों ने तकरीबन 10 मिनट तक गोलीबारी की । जिसमें बच्चे बूढ़े, महिलाएं और युवा सभी उम्र के लोग शामिल थे। इस नरसंहार में तकरीबन 1000 से भी अधिक लोग मारे गए और इतने ही लोग घायल भी हुए।

पंजाब राज्य के अमृतसर शहर के मध्य में, स्वर्ण मंदिर के पास स्थित यह उद्यान आज भी मौजूद है। जो 1919 के जलियांवाला बाग नरसंहार की याद दिलाता है।जलियांवाला बाग 6.5 एकड़ का सार्वजनिक उद्यान है जो राष्ट्रीय महत्व रखता है। यह उन सभी लोगों के लिए समर्पित एक उद्यान है जिन्होंने कुख्यात जनरल डायर की खुली गोलीबारी के दौरान अपनी जान गंवा दी थी।

तस्वीर साभार : स्वयं

इस उद्यान के एकमात्र प्रवेश द्वार से प्रवेश करते ही जब आप उन दीवारों के पास से गुजरेंगे जिन पर अभी भी अंग्रेज़ी क्रूरता के निशान मौजूद हैं तो आप अतीत में जाने पर मजबूर हो जाएंगे। इस उद्यान में वो शहीद कुआं भी मौजूद हैं जिसमें गोलीबारी से बचने के लिए कई लोग कूद गए,लेकिन जीवित नहीं बचे। यहां स्थिति स्मारक और गैलरी को देखकर हर इंसान यह कल्पना करने पर मजबूर हो जाता है कि कैसा रहा होगा वह दिन जब इसी उद्यान में हजारों बेकसूरों को मौत के घाट उतार दिया गया था।

तस्वीर साभार: स्वयं

पार्क में जगह-जगह सूचना पट्टियाँ हैं जो आपको वहां के प्रत्येक स्थान के ऐतिहासिक महत्व को जानने में मदद करती हैं। जलियांवाला बाग आज एक ऐसा स्थल है जो उन शहीदों, मारे गए पीड़ितों का सम्मान करता है। एक लाल मीनार जैसी संरचना इस घटना की याद दिलाती है। शाम तक रुकें और आप स्मारक को रोशन होते हुए देख सकते हैं। इसके अलावा जलियांवाला बाग में अमर ज्योति भी है - वह लौ जो 24x7 चमकती है। यहां एक छोटा सा संग्रहालय भी है। आप शाम के प्रकाश और ध्वनि शो के साथ नरसंहार के इतिहास के बारे में गहराई से जान सकते हैं। यह प्रतिदिन एक घंटे तक चलता है।

जलियांवाला बाग का इतिहास:

13 अप्रैल, 1919 को घटी एक दुखद घटना जिस दिन जलियांवाला बाग में हजारों निहत्थों को गोलियों से छलनी कर दिया गया था। यह भारतीय इतिहास में स्वतंत्रता के लिए भारत के संघर्ष के सबसे काले दिनों में से एक था। रोलेट एक्ट जो ब्रिटिश औपनिवेशिक सरकार द्वारा पारित एक दमनकारी कानून था, जिसने उन्हें बिना मुकदमे के किसी भी व्यक्ति को कैद करने की अनुमति दी थी। इस कानून का की वजह से पंजाब सहित पूरे भारत में विरोध शुरू हुआ।

जलियांवाला बाग में इस कानून का विरोध करने और दो प्रमुख भारतीय राष्ट्रवादी नेताओं की रिहाई की मांग करने के लिए हजारों लोग शांति से विरोध करने के लिए एकत्रित हुए थे। यहां पुरुष, महिलाओं के साथ बच्चे भी मौजूद थे।

तभी डायर और उसके सैनिकों ने जलियांवाला बाग में इस विद्रोह को कुचलने के लिए प्रवेश किया और बाहर निकलने के लिए एकमात्र निकास को भी बंद कर दिया और बिना किसी चेतावनी के, डायर ने अपने सैनिकों को निहत्थी भीड़ पर गोली चलाने का आदेश दिया। लगभग दस मिनट तक गोलीबारी करने के बाद अंत में, लगभग 400 से 1,000 लोग मारे गए और 1,200 से अधिक घायल हुए।

इस भीड़ में से कई लोग ख़ुद को बचाने के लिए कुएं में भी कूदे जिसमें से बाद में 120 शव मिले। अंग्रेजों ने दावा किया कि कुल मिलाकर 379 लोग मारे गए।

इस शहादत में मारे गए सभी लोग हमेशा के लिए इतिहास के सुनहरे पन्नों में दर्ज़ हो गए, जिन्होंने देश की स्वतंत्रता के लिए अपना सर्वस्व न्यौछावर कर दिया।

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Arpit Katiyar

Journalist • Independent Writer • International Debater