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देश की सांसों पर गहराता संकट

देश की राजधानी में दिनों-दिन बढ़ता प्रदूषण खतरे की घंटी बजा रहा है । ये बात किसी से छिपी हुई नहीं है कि दिल्ली में प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिए किए गए इंतज़ाम किसी काम के नहीं है। जैसे जैसे सर्दियां बढ़ती जाती हैं वैसे वैसे दिल्ली वालों की सांसों पर संकट के बादल मंडराने लगते हैं और ये स्थिति सिर्फ़ देश की राजधानी की ही नहीं बल्कि संपूर्ण उत्तर भारत की साथ साथ मध्य भारत की भी है। यही कारण है कि सुप्रीम कोर्ट के साथ साथ नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) भी इस समस्या को लेकर चिंतित है और समय समय पर केंद्र और राज्य सरकारों को सचेत करता रहता है।

भारत में पूरे वर्ष पीएम 2.5 का औसत स्तर 80-83 मिलीग्राम प्रतिघनमीटर रहता है। नेशनल एबिएंट एयर क्वालिटी स्टैंडर्ड (एनएएक्यूएस) के अनुसार यह स्तर 40 मिलीग्राम प्रतिघनमीटर से कम रहना चाहिए। पीएम 2.5 से अधिक स्तर इंसानों के स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है। स्थिति की गंभीरता को इस प्रकार समझा जा सकता है कि दिल्ली जैसे बड़े शहरों में एक दिन में सांस लेना लगभग 25 सिगरेट पीने के बराबर है। वहीं इतने प्रदूषित शहर में रहने वालों का जीवन भी औसत व्यक्ति के जीवन से तकरीबन 11 साल कम हो जाता है। 2022 की एक रिपोर्ट कहती हैं कि दिल्ली पूरे साल के 365 दिन में सिर्फ़ 68 से 70 दिन ही रहने लायक होती है। साल में सिर्फ़ 2 या 3 दिन ही यहां AQI 50 से नीचे रहता है।

तस्वीर साभार: इंटरनेट

इस स्थिति में केंद्र और राज्य सरकारें प्लान और गाइडलाइंस तो ज़ारी करती हैं लेकिन उन पर अमल करते नहीं दिखते। पंजाब और हरियाणा में इस बार पांच दिसंबर तक पराली जलाने के हजारों मामले सामने आ चुके हैं। प्रदूषण के बढ़ते कारणों की जिम्मेदारी राज्य सरकारें एक दूसरे के सिर मढ़ती नज़र आती हैं।

इसके लिए हमें अमेरिका के लॉस एंजिलिस शहर से सीख लेने में कोई हर्ज़ नहीं होनी चाहिए जब 1943 में लॉस एंजेलिस शहर की हवा इस कदर प्रदूषित हो गई थी कि लोगों को हवा में ब्लीच की गंध आने लगी और प्रदूषण पूरे शहर में कैद होकर रह गया। उसके बाद अमेरिका को क्लीन एयर एक्ट पास करने में लगभग 15 साल लग गए और 1970 से लेकर अब तक स्थिति ये है कि अमेरिका की हवा दुनिया की सबसे साफ़ और स्वच्छ हवा है।

तस्वीर साभार : इंटरनेट

भारत में प्रदूषण कम करने के लिए सरकारी एजेंसियां फरमान तो जारी करती हैं। बस ज़रूरत है तो इन्हें प्रभावी तौर से अमल में लाने की । पूरे वर्ष चादर ओढ़ कर सोने वाली एजंसियों और सरकारों की नींद तब खुलती है जब पानी सर से ऊपर पहुंच जाता है ऐसे में ज़रूरी है कि ना सिर्फ़ मौसमी सक्रियता बरती जाए अपितु वर्ष भर प्रभावी तरीके से प्रदूषण से निपटने के लिए पुख़्ता इंतजाम किए जाएं और एजेंसियों की प्लानिंग पर अमल भी किया जाए। वायु प्रदूषण रोकने के लिए आम जनमानस की भागीदारी भी बहुत महत्वपूर्ण है इसलिए उसका जागरूक होना बहुत आवश्यक है अतएव बड़े स्तर पर जागरूकता अभियान चलाएं जाएं जिससे आम नागरिक भी प्रदूषण को नियंत्रित करने की जिम्मेदारी सुनिश्चित कर सके।

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Arpit Katiyar

Journalist • Independent Writer • International Debater