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भारत में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता

भारत एक प्रजातांत्रिक देश है और इस देश की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि यहाँ प्रत्येक व्यक्ति को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता है। भारत के परिप्रेक्ष्य में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता न सिर्फ़ एक अधिकार है बल्कि भारतीय संस्कृति और सभ्यता की पहचान भी है। जब इसी स्वतंत्रता की आड़ में कुछ तत्व असंवैधानिक और नफ़रती भाषा के माध्यम से आम जनमानस में गलत संदेश पहुंचाने का प्रयास करते हैं तो ये प्रश्न हमारे सामने आकर खड़ा हो जाता है कि स्वयं को अभिव्यक्त करने की लक्ष्मण रेखा आख़िर कहां है?

हाल ही में "एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स" (एडीआर) ने जो आँकड़े ज़ारी किए हैं वो बेहद चौकाने वाले हैं। देश के 107 सांसदों और विधायकों के खिलाफ़ नफ़रत फैलाने वाले भाषण देने के आरोप में मामले दर्ज़ हैं। इतना ही नहीं, पिछले पांच वर्षों में 480 ऐसे उम्मीदवारों ने चुनाव भी लड़ा है, जिनके खिलाफ़ नफ़रती भाषण देने के आरोप हैं। एडीआर ने चुनाव में असफल उम्मीदवारों के चुनावी हलफनामों का विश्लेषण कर ये आँकड़े ज़ारी किए।

तस्वीर साभार: इंटरनेट

यही कारण है कि जहाँ एक ओर भारतीय संविधान का अनुच्छेद 19 का भाग (1) सभी धर्मों और वर्गो को बोलने की स्वतंत्रता प्रदान करता है वहीं दूसरी ओर अनुच्छेद 19 का भाग (2) इसकी मर्यादाएँ सुनिश्चित करता है।संविधान का अनुच्छेद 19 का भाग (2) ये स्पष्ट करता है कि यदि कोई नागरिक अभिव्यक्ति के दौरान हिंसा फैलाने या सामाजिक व्यवस्था को बाधित करने का प्रयास करता है तो राज्य उस पर प्रतिबंध लगा सकता है।

अभी कुछ दिनों पूर्व ,भारत और कनाडा के बीच हुए विवाद का एक प्रमुख कारण कनाडा में खालिस्तानी समर्थकों द्वारा अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का दुरुपयोग करना ही था। भारत ने, जिनेवा में संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद की सार्वभौमिक आवधिक समीक्षा के एक सत्र में कहा "कनाडा को हिंसा भड़काने वालों और आतंकवादियों को शहीदों के रूप में महिमामंडित करने वालों के लिए अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के दुरुपयोग को रोकने की जरूरत है।"

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सोशल मीडिया के दौर में ये घटनाएँ बेहद सामान्य हो चुकी है। फेसबुक से लेकर व्हाट्सएप संदेशों तक खुलेआम हिंसा परोसी जा रही है। आपको माचिस जलाने की पूरी आज़ादी है लेकिन आप पेट्रोल पंप पर माचिस जलाने जाते हैं, पेट्रोल पंप तबाह हो जाता है,लोग मारे जाते हैं तो सरकार को आपकी माचिस जलाने की आज़ादी छीन लेनी चाहिए। ये प्रतिबंध लोकतंत्र की मजबूती के लिए बेहद जरूरी है। ये बाधाएँ नहीं है,ये मर्यादाएँ है और इन मर्यादाओं का बना रहना आवश्यक है ताकी आज़ादी और आवारगी में फर्क बना रहे।

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Arpit Katiyar

Journalist • Independent Writer • International Debater