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बिहार में जातीय जनगणना का गणित

कोर्ट कचहरी के चक्कर से निकलकर आखिरकार बिहार में जातीय जनगणना के आंकड़े सार्वजनिक कर दिए गए हैं। इन आंकड़ों में सबसे ज्यादा आबादी पिछड़े वर्ग और अति पिछड़े वर्ग की है जो बिहार की कुल जनसंख्या का 63 प्रतिशत भाग हैं। अनुसूचित जातियों की संख्या 19.65% और अनुसूचित जनजातियों की संख्या 1.68% है। बिहार की 13 करोड़ की जनसंख्या में हिंदुओं की आबादी 81.9 फीसदी और मुसलमानों की जनसंख्या 17.7 फीसदी हैं वहीं अन्य दूसरे धर्मों में विश्वास रखने वालों की संख्या 1 % से भी कम हैं।

तस्वीर साभार: अनुज

गाँधी जयंती के अवसर पर बिहार सरकार के मुख्य सचिव विवेक सिंह ने ये आंकड़े सार्वजनिक किए। बिहार सरकार का मानना है कि बिहार की 215 जातियों और 6 धर्मों तक विकास पहुंचाने के लिए उन्हें पहचानना बेहद आवश्यक था जिसके लिए जातीय जनगणना एक उपयुक्त माध्यम था ।आंकड़े ज़ारी होने के बाद से ही सियासी गलियारा गर्म होने लगा है । ये आंकड़े बिहार की राजनीति में एक बड़ी और अहम भूमिका निभाने वाले हैं। जहां एक ओर विपक्षी दलों ने बिहार सरकार पर जाति आधारित राजनीति करने के आरोप लगाएं हैं तो वहीं दूसरी ओर कुछ राज्यों ने इसका समर्थन करते हुए अपने यहां भी जातीय जनगणना कराने की मांग की। इससे पूर्व राजस्थान और कर्नाटक भी अपने यहां जाति आधारित जनगणना करा चुके हैं। हालांकि उन्होंने आंकड़े सार्वजनिक नहीं किए।

कई राजनीतिक दल इससे पूर्व भी बिहार में जातीय जनगणना की मांग लंबे समय से कर रहे थे। बिहार सरकार का मानना है कि जातीय जनगणना के माध्यम से हाशिए पर खड़ी जातियों का ना सिर्फ़ उत्थान संभव है बल्कि उन्हें एक बेहतर जीवन भी मुहैया कराया जा सकेगा। ये आंकड़े भविष्य में राज्य की नीतियां बनाने में सहयोगी अवयव होंगे। लेकिन प्रश्न ये भी उठता है कि क्या मात्र जातीय जनगणना के आंकड़ों से ही सब तक एक समान न्याय और विकास पहुंचेगा या इसकी जमीनी हकीकत कुछ और है?

तस्वीर साभार: अनुज

ये बात किसी से छिपी हुई नहीं है कि वर्तमान राजनीति किसी एक विशेष धर्म या समुदाय पर ही टिकी हुई है। बिहार के राजनीतिक समीकरणों में पिछड़े वर्ग की भूमिका लोकसभा चुनावों के लिए उपयोगी साबित होगी। 1931 में बिहार में हुई जनगणना के अनुसार ओबीसी आबादी 52 प्रतिशत थी जो अब बढ़कर 63 % पहुंच गई है। जातीय जनगणना के बाद 2024 के लोकसभा चुनावों में इस आबादी को साधने का प्रयास किया जाएगा। साथ ही राष्ट्रीय स्तर पर भी इसका प्रभाव देखने को मिलेगा जिसके संकेत अभी से देखने को मिल रहे हैं। अब देखने वाली बात यह होगी कि इस जनगणना का उपयोग हाशिए पर खड़ी जातियों का विकास करने में किया जाएगा या इसका प्रयोग भी राजनीतिक रोटियों को सेंकने के लिए किया जाएगा। ये तस्वीर भी आने वाले समय में स्पष्ट हो जाएगी।

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Arpit Katiyar

Journalist • Independent Writer • International Debater